सरकार द्वारा सांसद निधि और सैलरी में कटौती, क्या यह देश में फाइनेंशियल इमरजेंसी आने का इशारा है? विशेषज्ञों से समझिए

सरकार द्वारा सांसद निधि और सैलरी में कटौती, क्या यह देश में फाइनेंशियल इमरजेंसी आने का इशारा है? विशेषज्ञों से समझिए Government cuts MP funds and salary Is this a sign of financial emergency in the country? Experts Different Opinions
कोरोनावायरस से होने वाले वित्तीय नुकसान से संभलने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। इसके तहत सरकार ने राहत पैकेज लेकर आई तो आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती की। वित्तीय संकट से निपटने के लिए सरकार ने एक साल तक सांसदों की सैलरी में 30% की कटौती करने का फैसला किया है, इसके साथ ही सांसद निधि (पीएमलैड्स) को भी दो साल तक फ्रीज करने का निर्णय लिया है। इन कदमों से केंद्र सरकार को करीबन 8,000 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है।
बिजनेस गतिविधियां ठप होने से टैक्स कलेक्शन में कमी
यह कदम दूसरे संकट की तरफ भी इशारा करते हैं। इससे यह भी सवाल उठ रहे हैं कि कोरोनावायरस संकट और गहराने पर सरकार के पास फंड एकत्र करने के और क्या रास्ते हो सकते हैं। क्या सरकारी कर्मचारियों की सैलरी में भी थोड़ी बहुत कटौती संभव है? क्या डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स को सरकार बढ़ा सकती है। अप्रैल के पहले सात दिनों में जिस तरह से मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, उससे सरकार चिंता बढ़ गई है। बिजनेस की पूरी गतिविधियां ठप होने, टैक्स कलेक्शन में कमी होने, जीएसटी में कमी होने सहित सरकार के जो आय के स्त्रोत हैं, उसमें इस महीने में काफी कमी आने की संभावना है। ऐसे में सरकार के लिए अब यह चुनौतीपूर्ण हो गया है कि किस तरह आनेवाले समय में वह इससे निपटने पर खर्च कर सकती है। इस पर देखते हैं विशेषज्ञों की क्या राय है?
रितिका खेड़ा, एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईएम (अहमदाबाद)
मैं फिलहाल फाइनेंशियल इमरजेंसी की बात नहीं कर रही, लेकिन, मैं यह अवश्य मानती हूं कि कॉविड-19 प्रभाव के परिणामस्वरूप देश मानवीय संकट का सामना कर रहा है। इसलिए वेतन कटौती की बात को स्वेच्छा से अपना लेना हमारा कर्तव्य बन गया है, भले ही सरकार इसके लिए कहे या ना कहे। इसके अलावा, मेरा मानना है कि सांसदों की औसत आय देश के लगभग 80 प्रतिशत काम करनेवालों के औसत वेतन से कहीं अधिक है जिनका वर्तमान में औसत वेतन 10000 रुपए से कम है।
हालांकि, बड़ा सवाल यह था कि क्या सरकार पैसे को सही तरीके से खर्च करेगी और क्या यह पैसा गरीब और सबसे गरीब के पास ठीक से पहुंच पायेगा? सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की है। लेकिन, मुझे व्यक्तिगत रूप से इस पर संदेह है। मेरा यह भी मानना है कि राहत पैकेज वास्तव में सिर्फ 1 लाख करोड़ रुपए का था। जबकि पीएमजेडीवाई के लिए 31,000 करोड़ रुपए आवंटित है, 30,000 करोड़ रुपए पेंशन धारक और वरिष्ठ नागरिकों को जाएंगे और 40,000 करोड़ रुपए की शेष राशि गरीब लोगों को राशन सामग्री की आपूर्ति दोगुनी करने पर खर्च किया जाएगा, जो की प्रशंसनीय कदम है।
हालांकि 1 लाख करोड़ रुपए का राहत पैकेज देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 0.5 प्रतिशत था, जो अन्य देशों की तुलना में बहुत छोटी राशि थी। अन्य देशों ने अपने सकल घरेलू उत्पाद के 10 प्रतिशत के राहत पैकेजों की घोषणा की है। सरकार को चाहिए था कि वह उन श्रमिकों के लिए मास किचन (लंगर) उपलब्ध कराने जैसा बेहतर काम करे जो लॉकडाउन घोषित होने के बाद अपने मूल स्थानों पर सामूहिक रूप से पलायन करने लगे। ऐसे समय में यह इतना मुश्किल काम नहीं हो सकता है जब अनाज के ढेर एफडीसी गोदामों में उपेक्षित पड़े हैं ।
अरुण कुमार, अर्थशास्त्री, इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर
कोरोना वायरस की बदौलत देश वित्तीय आपातकाल की ओर बढ़ रहा है। सरकार को खर्च में कटौती के उन रास्तों की तलाश करनी होगी जो गैर जरूरी हैं। इसका कारण यह है कि सरकारी राजस्व में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से तेज गिरावट देखने को मिलेगी। दूसरी ओर सरकार को महामारी से निपटने के लिए चिकित्सा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और प्रशासन जैसी चीजों पर खर्च बढ़ाना होगा।
इसलिए अगर सरकारी कर्मचारी आने वाले दिनों में अपने वेतन और मजदूरी में कटौती देखते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं है। इतना ही नहीं, सरकार वरिष्ठ अधिकारियों की हवाई यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा सकती है और उन्हें वर्चुअल मीटिंग या वेबिनार के जरिए काम करने के लिए कह सकती है। वास्तव में, मौजूदा संकट आर्थिक, सामाजिक और यहां तक कि राजनीतिक भी है।
नीरज प्रसाद, असिस्टेंट प्रोफेसर, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी
मुझे नहीं लगता है कि इससे देश में किसी भी तरह की वित्तीय इमरजेंसी की स्थिति पैदा होगी। मुझे यह भी नहीं लगता कि इससे किसी सरकारी कर्मचारी की सैलरी में भी कटौती होगी। इसका सरल कारण यह है कि सरकारी कर्मचारियों के 20 प्रतिशत वेतन कटौती का मतलब देश की खपत को कम करने जैसा होगा। यह कोई कहने की बात नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था कोरोना संकट से पहले से ही मंदी की ओर जा रहा था। इसके अलावा, एनएसओ रिपोर्ट (जिसे सरकार ने बदलाव के साथ अस्वीकार कर दिया था), ने भी पिछले साल संकेत दिया था कि देश की खपत पिछले दो दशकों के भीतर सबसे निचले स्तर पर पहले ही नीचे चली गई है।
हालांकि वे कहते हैं कि मैं सांसदों के फंड में किसी भी कटौती के पूरी तरह खिलाफ हूं। इसका कारण यह है कि यह एकमात्र ऐसा कोष है जिसके माध्यम से सांसद अपने स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए खर्च करते हैं। फण्ड में कटौती सांसदों की वित्तीय शक्ति छीनते हैं जो संविधान की संघीय प्रकृति के पूरी तरह से खिलाफ है। शशि थरूर जैसे सांसदों ने पहले ही अपने-अपने क्षेत्रों में कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए फंड का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
भारत में जून में पीक तक पहुंच सकता है कोरोनावायरस
अमेरिका के बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप का एक आंकलन है जिसमें कहा गया है कि भारत में कोरोना वायरस का असली असर जून के तीसरे या चौथे सप्ताह में दिख सकता है। यह आंकलन इस आधार पर किया गया है क्योंकि चीन में पहला मामला अक्टूबर में आया था और उसके 4 महीने बाद फरवरी में चीन में कोरोना के मरीजों का आंकड़ा शीर्ष पर पहुंच गया था। इस आधार पर भारत में पहला मामला जनवरी में आया था और यहां शीर्ष पर यह आंकड़ा जून के तीसरे या चौथे सप्ताह में होगा। इसका संकेत अप्रैल के पहले हफ्ते से मिलना शुरू हो गया है, जहां हर दूसरे या तीसरे दिन यह संख्या दोगुनी हो रही है।



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