ई-कॉमर्स प्लेटफार्म ने सीनियर सिटीजन के लिए बनाई सेफसीनियर ऐप, बुजुर्गों में कोरोना के शुरुआती लक्षणों का पता लगाएगी
आरपीजी लाइफ साइंस और सीनियर सिटीजन की ई-कॉमर्स प्लेटाफार्म कंपनी सीनियरिटी ने मिलकर सेफ सीनियर ऐप लॉन्च की है। यह एक प्रिडिक्टिव एनालिसिस टूल है जिसे सीनियर सिटीजन में कोरोना के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए डिजाइन किया गया है। ऑफिशियल रिलीज के मुताबिक, इसे संक्रमक रोग, कम्युनिटी मेडिसिन, क्लिनिकल फार्माकोलॉजी और कोविड-19 मैनेजमेंट फील्ड के एक्सपर्ट से परामर्श लेकर डिजाइन किया गया है।
भारत में लगभग 12 करोड़ सीनियर सिटीजन
इस समय जहां दुनिया कोरोना के प्रकोप से जूझ रही है वहीं भारत में भी इसके मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जो सरकार और स्वास्थ्य संगठनों के साथ लोगों के लिए भी चिंता का विषय बनी हुई है। दुनिया के लगभग 209 देश इस वायरस की जद में आ चुके हैं और अबतक 95 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। यह वायरस सीनियर सिटीजन को आसानी से अपना शिकार बना रहा है। भारत में इनकी संख्या 12 करोड़ के लगभग है यानी इन्हें ज्यादा खतरा है।
भारत में लगभग 12 करोड़ सीनियर सिटीजन
ऐप के को-फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर आयुष अग्रवाल में बताया कि सेफ सीनियर टूल को खासतौर से बुजुर्गों की कोरोना के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए बनाया गया है। बुजुर्गों को और उनके प्रिय जनों को ऐप में रोजाना कई महत्वपूर्ण मापदंड़ों के आधार पर जानकारी देनी होगी जैसे मौजूदा मेडिकल कंडीशन, ट्रैवल और लोगों से मिलने की हिस्ट्री और बुखार या सूखी खांसी जैसे प्रमुख लक्षणों के बारे में बताना होता है।
लाखों डेटा को रियल टाइम में एनालिसिस करने में सक्षम
उन्होंने बताया कि कुछ ही क्लिक से ऐप लगातार यूजर के स्वास्थ्य की निगरानी करता है। कंपनी का दावा है कि यह मजबूत एल्गोरिदम और डायनामिक हेल्थ कैपेबिलिटी से लैस है जो वास्तविक समय में ही लाखों डेटा का एनालिसिस करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि ऐप ने सिर्फ बुजुर्गों और उनके प्रियजनों को कोरोना के रिस्क के बारे में जानकारी देता है बल्कि स्थिति नियंत्रण से बाहर होने से पहले ही सही इलाज लेने की भी सलाह देता है।
12 भाषाओं में इस्तेमाल कर सकेंगे
फिलहाल ये ऐप 12 भाषाओं में काम करता है। इसका यूजर इंटरफेस काफी सरल है, इस कोई भी आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। इस ऐप से न सिर्फ सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को जनता तक पहुंचने में मदद मिलेगी बल्कि इससे उन्हें मेडिकल रिसोर्सेस आवंटित करने में भी आसानी होगी।
आरपीजी लाइफ साइंस और सीनियर सिटीजन की ई-कॉमर्स प्लेटाफार्म कंपनी सीनियरिटी ने मिलकर सेफ सीनियर ऐप लॉन्च की है। यह एक प्रिडिक्टिव एनालिसिस टूल है जिसे सीनियर सिटीजन में कोरोना के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए डिजाइन किया गया है। ऑफिशियल रिलीज के मुताबिक, इसे संक्रमक रोग, कम्युनिटी मेडिसिन, क्लिनिकल फार्माकोलॉजी और कोविड-19 मैनेजमेंट फील्ड के एक्सपर्ट से परामर्श लेकर डिजाइन किया गया है।
भारत में लगभग 12 करोड़ सीनियर सिटीजन
इस समय जहां दुनिया कोरोना के प्रकोप से जूझ रही है वहीं भारत में भी इसके मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जो सरकार और स्वास्थ्य संगठनों के साथ लोगों के लिए भी चिंता का विषय बनी हुई है। दुनिया के लगभग 209 देश इस वायरस की जद में आ चुके हैं और अबतक 95 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। यह वायरस सीनियर सिटीजन को आसानी से अपना शिकार बना रहा है। भारत में इनकी संख्या 12 करोड़ के लगभग है यानी इन्हें ज्यादा खतरा है।
भारत में लगभग 12 करोड़ सीनियर सिटीजन
ऐप के को-फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर आयुष अग्रवाल में बताया कि सेफ सीनियर टूल को खासतौर से बुजुर्गों की कोरोना के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए बनाया गया है। बुजुर्गों को और उनके प्रिय जनों को ऐप में रोजाना कई महत्वपूर्ण मापदंड़ों के आधार पर जानकारी देनी होगी जैसे मौजूदा मेडिकल कंडीशन, ट्रैवल और लोगों से मिलने की हिस्ट्री और बुखार या सूखी खांसी जैसे प्रमुख लक्षणों के बारे में बताना होता है।
लाखों डेटा को रियल टाइम में एनालिसिस करने में सक्षम
उन्होंने बताया कि कुछ ही क्लिक से ऐप लगातार यूजर के स्वास्थ्य की निगरानी करता है। कंपनी का दावा है कि यह मजबूत एल्गोरिदम और डायनामिक हेल्थ कैपेबिलिटी से लैस है जो वास्तविक समय में ही लाखों डेटा का एनालिसिस करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि ऐप ने सिर्फ बुजुर्गों और उनके प्रियजनों को कोरोना के रिस्क के बारे में जानकारी देता है बल्कि स्थिति नियंत्रण से बाहर होने से पहले ही सही इलाज लेने की भी सलाह देता है।
12 भाषाओं में इस्तेमाल कर सकेंगे
फिलहाल ये ऐप 12 भाषाओं में काम करता है। इसका यूजर इंटरफेस काफी सरल है, इस कोई भी आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। इस ऐप से न सिर्फ सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को जनता तक पहुंचने में मदद मिलेगी बल्कि इससे उन्हें मेडिकल रिसोर्सेस आवंटित करने में भी आसानी होगी।
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